Social Workers Urge CM Fadnavis to Promote Camel Rearing in Maharashtra
मुंबई के माहिम इलाके से जुड़े दो समाजसेवकों इरफ़ान मछीवाला और फारूक धाला ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को एक अनोखा सुझाव दिया है। उन्होंने राज्य के सूखाग्रस्त इलाकों में ऊंट पालन को बढ़ावा देने की मांग की है, जिसे एक टिकाऊ और बहुपयोगी पशुपालन विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है।
इन समाजसेवकों का मानना है कि ऊंट अपनी कठोर जलवायु में जीने की क्षमता, कम देखभाल की आवश्यकता और विविध उपयोगिता के कारण महाराष्ट्र के ग्रामीण और जल संकट झेल रहे क्षेत्रों के लिए समाधान साबित हो सकते हैं।
मराठवाड़ा और विदर्भ जैसे जल संकट प्रभावित क्षेत्रों में पारंपरिक जल-गहन पशुपालन की तुलना में ऊंट एक बेहतर विकल्प हो सकता है। फारूक धाला बताते हैं कि ऊंट कम पानी में जी सकता है, सूखी झाड़ियों पर जीवित रहता है और आमतौर पर बीमारियों से दूर रहता है—यही वजह है कि ये महाराष्ट्र के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं।
इरफ़ान मछीवाला ने भी इस पहल का समर्थन करते हुए कहा कि ऊंट न केवल सूखा-प्रतिरोधी होते हैं, बल्कि इनसे दूध, मांस, खाल, खाद, और अन्य उत्पाद भी प्राप्त होते हैं, जो ग्रामीण जीवन के लिए फायदेमंद हैं।
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया कि ऊंटों का उपयोग दुर्गम पहाड़ी इलाकों में सामान ढोने के लिए किया जा सकता है, खासकर उन इलाकों में जहां सूखे के चलते सड़क मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं और ईंधन की कमी होती है। इस तरह ऊंट पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद हैं, क्योंकि ये कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकते हैं।
पर्यटन और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए भी उन्होंने ऊंटों के इस्तेमाल की वकालत की है। औरंगाबाद, अहमदनगर और अन्य ग्रामीण किलों में ऊंट सवारी को पर्यटक आकर्षण बनाया जा सकता है, जिससे स्थानीय लोगों को आय का नया जरिया मिल सकता है। उनका कहना है कि राजस्थान की तरह यहां भी ऊंट पर्यटन मॉडल अपनाया जा सकता है।
ऊंट से मिलने वाले उत्पादों का भी प्रस्ताव में उल्लेख किया गया है, जैसे ऊंट का दूध जो विटामिन सी और आयरन से भरपूर होता है और स्वास्थ्य के प्रति सजग तथा लैक्टोज असहिष्णु लोगों में इसकी मांग बढ़ रही है। ऊंट का मांस प्रोटीन से भरपूर होता है और मध्य पूर्व, अफ्रीका और एशिया के कई देशों में खाया जाता है। ऊंट की कूबड़ की चर्बी पारंपरिक व्यंजनों में घी की तरह इस्तेमाल होती है। ऊंट की खाल और बालों से लेदर, कालीन और वस्त्र बनाए जाते हैं, जबकि इसका गोबर खाद और ईंधन के रूप में काम आता है। कुछ परंपरागत चिकित्सा प्रणालियों में ऊंट का मूत्र भी औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है।
साथ ही, समाजसेवकों का कहना है कि सऊदी अरब, यूएई, मिस्र और सूडान जैसे देशों में ऊंट उद्योग पहले से ही फलफूल रहा है। पश्चिमी देशों और चीन में भी ऊंट के दूध और मांस की मांग तेजी से बढ़ रही है। महाराष्ट्र इस अंतरराष्ट्रीय बाजार का हिस्सा बन सकता है, बशर्ते सही नीति और आधारभूत ढांचा मुहैया कराया जाए।
धाला और मछीवाला ने एक और सुझाव में राजस्थान की तर्ज पर वार्षिक ऊंट महोत्सवों के आयोजन का विचार रखा है, जिनमें ऊंट परेड, साज-सज्जा प्रतियोगिता, दौड़ और सौंदर्य प्रतियोगिताएं शामिल हों। इससे न केवल पर्यटन को बल मिलेगा, बल्कि पारंपरिक शिल्पकला को भी संजोया जा सकेगा और ऊंट पालकों को आमदनी का जरिया मिलेगा।
अंत में उन्होंने सरकार से अनुरोध किया है कि कुछ जिलों में पायलट प्रोग्राम शुरू किए जाएं, जिसमें किसानों को प्रशिक्षण देकर ऊंट पालन को प्रोत्साहित किया जाए। उनका मानना है कि यह पहल जलवायु परिवर्तन और ग्रामीण विकास की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है।
समाजसेवकों का कहना है कि अब समय आ गया है कि सरकार परंपरागत सोच से आगे बढ़े और रेगिस्तान की ओर उम्मीद की नजर से देखे।
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