मालवणी शिया जामा मस्जिद मे जुलूसे फातेमी एहतेजाजी जलसा का कार्यक्रम
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क्या बुजुर्गाने दीन की क़बरों पर तामीर करना बिदअत है?
मुस्लमानों में ऐसे बहुत से फ़िक़ही और अकाएद पर मबनी मसाएल पाए जाते हैं , जिनकी बाबत फुकहा और उलमा के अक्वाल में इख्तलाफ़ मिलते हैं। अहे तसन्नुन ,जो अपने आपको एक जमात तसव्वुर करते हैं, उनके चारों इमामों के अक्वाल में पंजगाना नमाज़ से लेकर हज तक के अरकान में मुतअद्दिद मुआमलात में इख्लेलाफ़ पाया जाता है। कहीं ये इख्तलाफ़ मामूली है तो कहीं बहुत ज्यादा मगर जहाँ तक बुजुर्गाने दीन की कुबूर पर तामीर का मसला है, इस मुआमले में सिर्फ अहे तसन्नुन ही नहीं, शीया फुकहा में भी इस बाबत कोई इख़्तलाफ़ नहीं पाया जाता। वो इसलिए कि इन सब के पास अक्ली-ओ-नक़ली दलाएल के अलावा ये दलील भी मौजूद है कि मुसलमानों ने सद्रे अव्वल ही से बुजुर्ग शख़्सियात की कब्रों पर इमारात बनाई हैं। और मुसलमानों की ये अमली सीरत है जो पैगम्बर
अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के ज़माने में शुरू हुई थी और आज तक बाक़ी व जारी है। इस मुख्तसर मकाला में हम इन मुतअद्दिद शवाहिद में से चंद एक को बतौर नमूना पेश कर रहे है:
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